"Manjit's Manjinopathy - "राग-रागिनी वर्गीकरण"
- dileepbw
- Sep 3, 2023
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"Manjit's Manjinopathy - "राग-रागिनी वर्गीकरण"
©दिलीप वाणी,पुणे
मनजीत गटावर सक्रीय झाल्यापासून गटावरील सगळेच "संगीतप्रेमी" एकदम जागरूक झाले आहेत.उदयच्या रोजच्या अप्रतिम गीतांना इतके दिवस मनातल्या मनात "दाद" देणारे आता चक्क संगीतावर भाष्य करू लागले आहेत.ही आनंदाची गोष्ट आहे.शांतारामने कवितेत म्हटल्याप्रमाणे "दिलकी खिचडी पकाये मंजीत दिलवाला" या खिचडीत "साधू वाणी डाले पानी और मिर्च मसाला" या काव्यपंक्तीप्रमाणे आज "Manjit's Manjinopathy - राग-रागिनी वर्गीकरण" सादर करतो.
१.मध्यकालीन की यह विशेषता थी की कुछ रागों को "स्त्री" और कुछ रागो को "पुरुष" मानकर रागों की वंश -परम्परा मानी गई। इसी विचारधरा के आधार पर राग-रागिनी पध्दति का जन्म हुआ।
२.यही भारतीय "सृष्टीतत्त्व" का दर्शन है। इसी दृष्टि से सांगीतिक सृस्टि के विकास एवं उत्पत्ति के लिए भी स्त्री पुरुष रूप राग – रागिनी सिद्धान्त का व्यवहार संगीत में पाया जाता है।
३.इसी सिद्धान्तका प्रभाव राग-रागिनी वर्गीकरण पद्धति के ग्रंथों में दिखाई देता है। इस वर्गीकरण में रागों को पति-पत्नी तथा पुत्र-पुत्रवधू आदि मानकर इसी आधार पर रागों का वर्गीकरण किया गया है। ४.मध्यकालीन क्रियकुशल गुणियोंमें सूरदास व अन्य अष्टछाप के कवी स्वामी,हरिदास एवं तानसेन आदि राग -रागिनी वर्गीकरण को ही मानने वाले थे।५.स्वरसाम्य के साथ स्वरोच्चारण की समानता तथा चलन समता जैसे कुछ सिद्धान्तों को आधार बनाकर इस वर्गीकरण में संशोधन किया गया , परन्तु प्राचीन परम्परा का सुदृढ़ सहयोग न मिल पाने से यह व्यवस्था गुणियों में मान्यता प्राप्त नहीं कर सकी।
६.शिव तथा शक्ति के संयोग से रागों की उत्पत्ति हुई। महादेव के पाँच मुखों से पाँच राग और छठा राग पार्वती के मुख से उत्पन्न हुआ , जो इस प्रकार है:-
महादेव के पाँचमुख से क्रमशः राग उत्पन्न हुए
पूरब मुख - भैरव राग
पश्चिम मुख - हिण्डोल राग
उत्तर मुखमेघ - राग
दक्षिण मुख - दीपक राग
आकाशोन्मुख - श्री राग
तथा पार्वती जी के मुख से "कौशिक राग" उत्पन्न हुआ।
७.राग-रागिनी वर्गीकरण उत्तर भारत व दक्षिण भारत दोनों जगह प्रचलित था।
८."संगीत मकरंद" में पुरुष राग,स्त्री राग एवं नपुंसक राग आदि का विभाजन मिलता है तथा इनका संबंध - रौद्र ,वीर ,अद्भुत ,शृंगार ,हास्य , करुण ,भयानक ,वीभत्स और शांत रसों से जोड़ा गया है। इस ग्रन्थ में "ताल को विष्णु रूप,नाद को शिवरूप एवं गीतों को प्रणव ब्रम्हा" रूप बताया गया है।
९."संगीत दर्पण" राग-रागिनी वर्गीकरण का प्रसिद्ध ग्रन्थ स्वीकार किया जाता है। इसमें शिव तथा शक्ति के संयोग से रागों की उत्तपति निम्न प्रकार बताई है
अद्योवक्त्र मुख से - श्री राग
वामदेव मुख - बसंत राग
अघोर मुख से - भैरव राग
तत्पुरुष मुख से - पंचम
ईशान मुख से - मेघ राग
की उत्त्पत्ति हुई है।
१०.लास्य नृत्यके प्रसंगसे पार्वतीके मुखसे "नटटनारायण राग" अवतरित हुआ है।




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