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"माझा नातू अगस्त्य - भाग २२"

  • dileepbw
  • Sep 5, 2023
  • 3 min read

"माझा नातू अगस्त्य - भाग २२"

ब्रिटनमधे जन्माला आलेल्या माझ्या नातवाचे नाव ब्रिटनचे भारतीय मूळाचे पंतप्रधान "ऋषी सुनक" यांच्या प्रमाणेच भारतीय संस्कृतीशी बांधिलकी असणारे असावे या विचाराने शोधून शोधून "अगस्त्य" असे ठेवले.आज माझा नातू एक महिन्याचा झाला.त्या निमित्ताने "अगस्त्य" मुनी यांची "दक्षिण भारतीय योगविद्या" सांगतो.

१.अगस्त्य मुनि को दक्षिण भारतीय योगविद्या/रहस्यवाद के जनक के रूप में जाना जाता है।

२.सारे भारतीय उपमहाद्वीप में इतनी ऊर्जा के साथ और इतने शक्तिशाली ढंग से आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रचार, प्रसार उन्होंने किया कि उनके महान कार्यों की कहानियाँ आज भी लोगों के दिलो दिमाग पर छायी हुई हैं। 

३.कथा कहती है कि अगस्त्य मुनिने अपनी साधना जमीन के अंदर, किसी गुप्त स्थान में की और वे लंबे समय तक निष्क्रिय दशा की अवस्था में रहे। जब वे बाहर आये तब तक सारा ज्ञान उन्होंने अपने ही एक भाग के रूप में अपने में समा लिया था, वे उस ज्ञान के साथ एकरूप हो गये थे। इस ज्ञान को उन्होंने अपने पास इस तरह नहीं रखा जैसे कि वो कोई बुद्धिमत्ता की संपत्ति हो बल्कि ये उनके मानवीय तंत्र की एक धड़कती हुई, जीवित, सक्रिय प्रक्रिया जैसा। उन्होंने दक्षिण की ओर जाने के अपने लक्ष्य को पूरा करने का निर्णय लिया और आदियोगी के सात शिष्यों में वे सबसे ज्यादा विख्यात हुए। जिस ऊर्जा और शक्ति के साथ भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में अगस्त्य मुनि ने इस विद्या का प्रचार, प्रसार किया, उसी की वजह से वे सबसे प्रमुख रहे।

४.अगस्त्य के माध्यम से योग विज्ञान एक खास रूप में दक्षिण भारत में आया। कई तरह से अगस्त्य मुनि दक्षिण भारतीय योगविद्या/रहस्यवाद के जनक हैं। दक्षिणी भारत के सभी सिद्ध अगस्त्य मुनि की परंपरा के ही हैं और दक्षिणी भारत की योगविद्या का एक अलग ही रंग ढंग है और ये अगस्त्य के कारण है।

५.जैसे आपकी माँ ने आपको सुबह उठना और दाँत साफ करना सिखाया, उसी तरह अगस्त्य मुनि ने हर जगह जा कर लोगों को आध्यात्मिक प्रक्रिया सिखायी।

६.कैलाश पर्वत एक जबर्दस्त आध्यात्मिक ग्रंथालय है, ज्ञान का भंडार है। जब लोग इसे शिव का घर कहते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि वे वहाँ आज भी बर्फ पर नृत्य कर रहे हैं। वास्तव में इसका मतलब ये है कि जो कुछ भी उनके पास था, उसे उन्होंने इस जगह पर जमा कर रखा है। सिर्फ वे ही नहीं, जो कोई भी कैलाश आया, उसने अपनी ऊर्जाओं का निवेश कैलाश में किया। अगस्त्य मुनि ने अपनी ऊर्जाओं का निवेश कैलाश में किया। दक्षिण भारतीय योगविद्या/रहस्यवाद में जो कुछ भी है, उसके स्रोत अगस्त्य ही हैं।

७.अगस्त्य मुनि सबसे पुरानी युद्ध कला 'कलारीपयट्टू' के रचनाकार हैं । दुनियामें कलारीपयट्टू शायद सबसे पुरानी युद्ध कला है। शुरुआत में, मूल रूप से, ये अगस्त्य मुनि ने ही सिखायी। युद्ध कला का मतलब सिर्फ लात या मुक्के मारना या हथियार से घाव करना ही नहीं है। अपने शरीर को हर संभव तरीके से किस तरह उपयोग में लाया जाता है, ये सीखना ही युद्ध कला है। इसमें सिर्फ व्यायाम और सतर्कता के दूसरे पहलू ही नहीं बल्कि ऊर्जा प्रणाली को समझना भी शामिल है। कलारी चिकित्सा और कलारी मर्म भी इसके भाग हैं और ये शरीर के रहस्यों को जानने के लिये है कि कैसे शरीर खुद को जल्दी ठीक करे और हमेशा सुधार की प्रक्रिया में रहे। आजकल के समय में शायद ऐसे बहुत कम कलारी साधक हैं जो इस कला में पर्याप्त समय, ऊर्जा और ध्यान लगायें।

८.अगस्त्य मुनि "सिद्ध वैद्य परंपरा" के संस्थापक हैं। खुद आदियोगी इसका इस्तेमाल करते थे और अगस्त्य इस प्रणाली को दक्षिणी भारत में ले आये। ये स्वभाव से तात्विक यानि तत्वों की समझ पर आधारित है। इस प्रणाली में काम करने के लिये पढ़ाई से ज्यादा ज़रूरी है तत्वों पर अंदरूनी अधिकार पाना। मूल रूप से इसका स्वभाव तात्विक होने की वजह यह है कि ये ज्यादातर यौगिक विज्ञान से आयी है, क्योंकि यौगिक विज्ञान का आधार भूत शुद्धि है, यानि अपने तत्वों की सफाई।

९.सप्तर्षि कोई आकाश से नहीं गिरे थे। कोई नहीं जानता कि भारतीय उपमहाद्वीप में वे लोग कहाँ जन्मे थे। साधारण सी किन्हीं जगहों पर किन्हीं साधारण स्त्रियों ने उन्हें जन्म दिया होगा। वे कोई स्वर्ग से उतर कर नहीं आये थे। उन्होंने खुद को तैयार किया, बनाया, बढ़ाया। उनकी जीवन गाथाओं के बारे में यही बात महत्वपूर्ण है। योग और साधना भी ऐसे ही महत्वपूर्ण हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं, आपके माता पिता कौन थे, आपका जन्म कैसे हुआ था, या फिर आपके काम किस तरह के हैं, आदि!

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